Home Politics छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव -२०२३ में कांग्रेस की हार के कारण

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव -२०२३ में कांग्रेस की हार के कारण

by Ravikant Dewangan
0 comments
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव -२०२३ में कांग्रेस की हार के कारण

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव -२०२३ में कांग्रेस की हार के कारण

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव -२०२३ में कांग्रेस की अप्रत्याशित हार हुई तथा भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में पुनः वापसी की। कांग्रेस पार्टी ने संगठन के स्तर पर हार की समीक्षा की तथा हार का ठीकरा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर फोड़ा। जबकि इसी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ने विधानसभा चुनाव -२०१८ में कांग्रेस को ६८ सीटें जितवाए थे। ईवीएम की आड़ लेकर कांग्रेस अपने अंदरुनी अंतरकलह एवं गुटबाज़ी तथा चुनाव प्रबंधन की कमज़ोरी को नहीं छुपा सकती। उसे जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेकर हार का मंथन करना चाहिए। चुनावी हार जीत में कोई एक फैक्टर जिम्मेदार नहीं होता उसके पीछे कई कारण छुपे होते हैं।कई हारे हुए प्रत्याशी खुलकर इस बात को स्वीकार भी कर चुके हैं तथा अपनी बात पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचा चुके हैं। बहरहाल कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में नए प्रभारी की नियुक्ति कर दी है तथा लोकसभा चुनाव -२४ की तयारी में जुट गई है ,किन्तु जब तक विधानसभा चुनाव में हार के कारणों का पता नहीं लगाया जायेगा तब तक लोकसभा चुनाव की नैया पार नहीं हो सकती।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण

१.कांग्रेस पार्टी में आतंरिक कलह एवं गुटबाज़ी –

हाल में नए प्रभारी के छत्तीसगढ़ आगमन पर आयोजित बैठक में नवनियुक्त नेता प्रतिपक्ष ने स्वीकार किया की “हम हार के बाद एक दूसरे से आँख नहीं मिला पा रहे हैं” इस बात से पार्टी में आतंरिक कलह एवं गुटबाज़ी की बात स्पष्ट हो जाती है। एक पूर्व मंत्री ने चुनाव में एक केंद्रित शक्ति होने का आरोप लगाया है। पार्टी के एक अन्य मंत्री ने पूर्व प्रभारी पर पक्षपात का आरोप लगाया है। चुनाव में उपमुख्यमंत्री सहित कई मंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष का हार जाना इस बात की पुष्टि करता है की दिग्गजों ने एक दूसरे को निपटाने के चक्कर में पुरे चुनाव का कबाड़ा कर दिया। सरगुजा संभाग की सभी सीटों पर हारना पूर्व उपमुख्यमंत्री तथा संगठन की कमज़ोरी को दर्शाता है।

२.सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप –

चुनाव के पूर्व सरकार पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे। चाहे वह शराब घोटाला हो , कोयला घोटाला हो , पीएससी भर्ती घोटाला हो ,गोबर घोटाला हो इन सब आरोप से सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा । शराब और कोयला घोटाले में तो कई नौकरशाह और नेताओं को जेल जाना पड़ा। रही सही कसर चुनाव के ठीक पहले लगे महादेव सट्टा एप के संचालकों से लेनदेन के आरोप ने पूरी कर दी। प्रधानमंत्री सहित भाजपा के सभी प्रचारकों ने अपने चुनावी सभा में इस बात को जोर देकर एक माहौल बनाया। प्रधानमंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री को “तीस टक्का कका” कहकर सम्बोधित किया।

३.धर्मान्तरण का मुद्दा –

बस्तर सहित प्रदेश के कई क्षेत्रों में धर्मान्तरण एक प्रमुख चुनावी मुद्दा रहा। कांग्रेस इस बात को हमेशा नकारती रही परन्तु भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाकर आदिवासी क्षेत्रों में लाभ लिया। बस्तर एवं सरगुजा क्षेत्र इसका नुकसान पार्टी को हुआ।

४.तुष्टिकरण एवं सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं – कवर्धा एवं बिरनपुर की घटना ने प्रदेश के सौहार्द्रपूर्ण वातावरण को ख़राब किया। सरकार पर विशेष वर्ग का पक्ष लेने का आरोप लगा कर भाजपा ने इसे न सिर्फ चुनावी मुद्दा बनाया बल्कि बिरनपुर हत्याकांड के पीड़ित व्यक्ति को टिकट देकर माहौल को अपने पक्ष में करने में सफलता प्राप्त किया। कवर्धा एवं साजा के साथ आसपास की सीटों पर इसका स्पष्ट प्रभाव देखने को मिला। दुर्ग संभाग की अधिकतर सीटों पर कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

५.विकास कार्य ठप होना –

कांग्रेस ने अपने ५ साल के कार्यकाल में किसानो एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाये परन्तु विकास के मोर्चे पर सरकार असफल रही। प्रधानमंत्री आवास योजना में राज्य सरकार अपना अंशदान नहीं दे पायी जिससे लाखो लोगों को अपने पक्के आवास से वंचित होना पड़ा।प्रदेश में सड़कों के मरम्मत नहीं होने से दुर्घटनाओं में वृद्धि हो गई थी तथा आवागमन कठिन हो गया था। जिससे आम जनता में सरकार के प्रति रोष व्याप्त था।

६.युवाओं में व्याप्त रोष –

कांग्रेस ने अपने जनघोषणा पत्र में शिक्षित बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था परन्तु ४.५ सालों तक इसे टालते रहे। अंतिम ६ माह में जब बेरोजगारी भत्ता देने की शुरुआत की गई तो उसमें भी बहुत से नियम एवं शर्तें लगा दी गई जिससे कई युवा इस योजना का लाभ नहीं ले पाए। साथ ही सरकारी भर्तियों में अनियमितता और भ्रष्टाचार के कारण युवाओं में सरकार के प्रति नाराज़गी बढ़ी। पुलिस भर्ती हो या शिक्षक भर्ती हो या सीजीपीएससी भर्ती का मामला हो इन सब मुद्दों पर सरकार ने युवाओं का साथ नहीं दिया।

७.शासकीय कर्मचारियों में नाराज़गी –

ट्रांसफर एवं पोस्टिंग में लेनदेन का खेल चलने के कारण कर्मचारियों में सरकार के प्रति गुस्सा था। कई अनियमित कर्मचारियों द्वारा उन्हें नियमित करने की मांग की जाती रही जिसकी सरकार ने लगातार अनदेखी की। हालांकि सरकार ने पुरानी पेंशन योजना तथा साप्ताहिक कार्यदिवस में कमी करके कर्मचारियों को खुश करने का प्रयास किया परन्तु इसमें सफल नहीं हो पाए।

८.सरकार की आत्ममुग्धता – कांग्रेस सरकार को अपने कार्यकाल में किये गए कार्यों पर अत्यधिक भरोसा हो गया था। वह अपने कार्यों के प्रति आत्ममुग्ध हो गई थी जबकि वास्तविकता कुछ और ही थी।चुनाव में जनता ने भूपेश है तो भरोसा है नारे की हवा निकाल दी।

९.कमज़ोर चुनावी रणनीति –

कांग्रेस ने जनता के जमीनी मुद्दों के बजाय अपने काम पर भरोसा किया तथा किसानों एवं आदिवासी के मुद्दे पर चुनाव लड़ा। चुनाव में कई विधायकों का प्रदर्शन एवं आंतरिक सर्वे के नाम पर टिकट काटा गया तथा नए चेहरे को टिकट दिया गया। इनमे से कई सीटों पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। साथ ही दिग्गज अपने अपने क्षेत्र तक ही सीमित कर दिए गए थे जिससे चुनाव का सही परिपेक्ष्य हासिल नहीं हो पाया। कार्यकर्ताओं एवं नेताओं की नाराज़गी चुनाव में हार का बड़ा कारण बानी।

१०.भारतीय जनता पार्टी की मज़बूत चुनावी रणनीति –

भाजपा ने चुनाव के पूर्व परिवर्तन यात्रा निकल कर सरकार के प्रति माहौल बनाया तथा जनता के मुद्दों को जोर शोर से उठाकर उसे चुनावी मुद्दा बनाया। अपने चुनावी संकल्प पत्र में मोदी की गारंटी के नाम से चुनावी वादे किये तथा उनका जमकर लोगों के बीच प्रचार किया। चुनाव के कई माह पूर्व उम्मीदवारों के नामों की घोषणा से वह चुनावी तैयारी में दो कदम आगे रही। महतारी वंदन योजना ने पूरा चुनावी माहौल बदलकर रख दिया तथा महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में किया। भाजपा ने बूथ स्तर पर इस चुनाव का प्रबंधन किया तथा संगठन ने मज़बूत चुनावी रणनीति तैयार की। प्रधानमंत्री ,केंद्रीय मंत्रियों समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने चुनावी सभाएं कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया जिसका लाभ पार्टी को मिला।

आगे की राह

कांग्रेस को चुनावी हार के लिए ईवीएम को दोष ना देकर जनादेश का सम्मान करना चाहिए। उसे यह नहीं भूलना चाहिए की लोकतंत्र के उत्सव में जनता ही जनार्दन होती है। कांग्रेस पार्टी को सबसे पहले अपने आंतरिक गुटबाज़ी को समाप्त कर एकजुटता से आने वाले लोकसभा चुनाव में जनता के बीच जाना होगा। अपने कार्यकर्ताओं एवं नेताओ को अनुशासन में रखकर नई ऊर्जा एवं उत्साह के साथ लड़ना चाहिए। लोकसभा चुनाव में स्व्च्छ छवि वाले उम्मीदवारों को टिकट देना चाहिए। विधानसभा चुनाव -२३ में कांग्रेस का मत प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले नाम मात्र ही कम हुआ है जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह नकारा नहीं है। आगामी लोकसभा चुनाव में इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। यदि प्रदेश की नई सरकार अपने चुनावी वादे पुरे नहीं कर पाती और जनता के उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती तो कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा बशर्ते वह जनता के बीच अपनी पकड़ बनाये रखे और विकास और जमीनी मुद्दों के साथ जनता की भावनाओं का ध्यान रखे।

 

View Synonyms and Definitions

You may also like

Leave a Comment