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बस्तर दशहरा: ऐतिहासिक दशहरा पर्व

by Ravikant Dewangan
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छत्तीसगढ़ बस्तर दशहरा ऐतिहासिक दशहरा पर्व

छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में दशहरा मनाने की अनूठी परंपरा है। यह ऐतिहासिक पर्व अपनी विशिष्ट संस्कृति के लिए जाना जाता है। यह ७५ दिनों तक चलने वाला विश्व का सबसे लम्बा दशहरा पर्व है। बस्तर दशहरा, भारत के अन्य दशहरा उत्सवों से भिन्न है, क्योंकि इस पर्व में रावण का वध नहीं किया जाता बल्कि यह बस्तर की आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी और अन्य स्थानीय देवी-देवताओं को समर्पित एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है।बस्तर दशहरा एक ऐतिहासिक पर्व है ,इसकी शुरुआत १४१० ई. में काकतीय शासक पुरुषोत्तम देव ने की थी।

बस्तर दशहरा की विशेषताएं-

बस्तर दशहरा आदवासियों की आदिम संस्कृति का सजीव उदाहरण है।

  • १. ७५ दिनों का उत्सव: बस्तर दशहरा ७५ दिनों तक मनाया जाता है, जो इसे दुनिया का सबसे लंबा दशहरा उत्सव बनाता है।६०० वर्षों से भी पुराने पर्व को आज भी भव्य एवं पारम्परिक रुप से ही मनाया जाता है।
  • २.धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव: यह त्यौहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह बस्तर की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है।
  • ३.रथ यात्रा: बस्तर दशहरा का मुख्य आकर्षण रथ यात्रा है।बस्तर के आदिवासियों द्वारा निर्मित लकड़ी के विशाल रथ में देवी दंतेश्वरी की मूर्ति को स्थापित किया जाता है और जगदलपुर शहर की गलियों में घुमाया जाता है।
  • ४.नृत्य और संगीत: बस्तर दशहरा के दौरान विभिन्न प्रकार के नृत्य और संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।यह बस्तर की आदिम संस्कृति को दर्शाने का माध्यम है।
  • ५.हाट-बाजार: बस्तर दशहरा के दौरान विभिन्न प्रकार के हट-बाजार आयोजित किए जाते हैं, जहाँ लोग स्थानीय हस्तशिल्प और अन्य वस्तुओं की खरीद कर सकते हैं।इसमें दैनिक वस्तुओं से लेकर विशेष उपयोगी वस्तुओं का क्रय विक्रय किया जाता है।
  • ६.बस्तर अंचल का सबसे बड़ा पर्व -यह सर्व आदिवासी समाज द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा पर्व है,इसमें आम लोग भी भागीदार होते हैं
  • ७.राजतन्त्र की परंपरा का पालन – आधुनिक लोकतंत्र के युग में बस्तर दशहरा में राजतन्त्र परंपरा की झलक मिलती है। यह पर्व बस्तर राजपरिवार की अगुवाई में संपन्न होता है। बस्तर राज परिवार के सदस्य इस पर्व को पूरे विधि विधान से संपन्न कराते हैं।


बस्तर दशहरा की रस्में

ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत पाट जात्रा पूजा विधान से होती है। श्रावण माह की अमावस्या को जगदलपुर स्थित माँ दंतेश्वरी मंदिर में पाट जात्रा पूजा किया जाता है। इसी दिन से रथ निर्माण के लिए औजार बनाये जाते हैं।

डेरी गड़ाई-अंडे और मोंगरी मछली की बलि देकर इस रस्म को पूरा किया जाता है। ग्राम बिरिंग्पाल से लाई गई साल वृक्ष की लकड़ी की पूजा कर रथ निर्माण प्रारम्भ किया जाता है।

काछिनगादि-काछिनगुडी ग्राम में काछनदेवी को बेल के काटों से बने झूले में बैठाया जाता है उसके बाद पूजा अर्चना कर बस्तर दशहरा के रथ संचालन की देवी से अनुमति ली जाती है।

जोगी बिठाई और जोगी उठाई -यह कलश स्थापना पर्व है। सिरहासार भवन जगदलपुर में नवरात्रि के ९ दिनों तक यह अनुष्ठान किया जाता है जिसमे ५-६ फिट गड्ढे में एक व्यक्ति को ज्योति कलश लेकर एक ही मुद्रा में बैठना होता है ताकि बस्तर दशहरा पर्व निर्विघ्न संपन्न हो।

रथ परिक्रमा -आश्विन द्वितीय से सप्तमी तक द्विमंजिल एवं ८ पहियों वाली रथ को किलेपाल परगना के माड़िया आदिवासियों द्वारा खींचा जाता है। रथ खींचने की रस्सी सियाड़ी पेड़ की छाल से बनाई जाती है रथ का निर्माण साल वृक्ष की लकड़ी से झार उमरगांव और बेडा उमरगांव के आदिवासियों द्वारा बनाया जाता है।

निशा जात्रा -दुर्गाष्टमी के दिन देवी को प्रसन्न करने के लिए तथा सुख समृद्धि की कामना के लिए ११ बकरों की बलि दी जाती है।
मावली परघाव- रामनवमी के दिन दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी देवी को बस्तर दशहरा में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया जाता है तथा दंतेवाड़ा से माँ दंतेश्वरी की डोली में मावली देवी मूर्ति लाई जाती है।

भीतर रैनी-विजयादशमी के दिन रात्रि के समय स्थानीय आदिवासियों के द्वारा सिरहासार भवन के बाहर रखे रथ को चुरा कर कुम्हड़ाकोट ग्राम में जंगलों में छिपा दिया जाता है।

बाहर रैनी -एकादशी के दिन बस्तर के राजा कुम्हड़ाकोट जाकर रथ की पूजा अर्चना कर अन्न जल अर्पित कर रथ को वापस लाकर भवन के सिंह द्वार पर खड़े किया जाता है।

मुरिया दरबार – द्वादशी के दिन बस्तर दशहरा सफलता पूर्वक संपन्न होने पर सिरहासार भवन में आम सभा का आयोजन कर काछिन्दवी को सम्मानित किया जाता है। इस मुरिया दरबार में स्थानीय आदिवासी राजा को अपनी समस्याएं बतातें है तथा राजा के द्वारा उनका समाधान किया जाता है।
ओहाड़ी /गंगामुड़ा यात्रा -त्रयोदशी के दिन बस्तर दशहरा के समापन के बाद गंगामुड़ा यात्रा में मावली माता को विदाई दी जाती है।

बस्तर दशहरा, एक अनोखा और अद्भुत उत्सव है, जो बस्तर की संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। यह उत्सव, बस्तर के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन है।

बस्तर दशहरा की अतिरिक्त जानकारी:

बस्तर दशहरे के दौरान, बस्तर में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे कि नृत्य, संगीत, और नाटक।
बस्तर दशहरा, बस्तर के हस्तशिल्प और कला का भी प्रदर्शन करता है।
बस्तर दशहरा, भारत के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है और हर साल लाखों लोग इस उत्सव में भाग लेते हैं।
यह उत्सव, बस्तर की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

 

 

 

 

 

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